चोर और कुआं: तेनालीराम की कहानी
एक दिन, जब राजा कृष्णदेवराय जेल का सर्वेक्षण करने गए, तो वहां कैद दो चोरों ने राजा से दया की सिफारिश की। उन्होंने कहा कि दोनों चोरी में विशेषज्ञ थे, इसलिए दोनों राजा को अन्य चोरों को पकड़ने में मदद कर सकते थे।
राजा एक अच्छा शासक था, इसलिए उसने अपने सैनिकों से दोनों चोरों को रिहा करने को कहा, लेकिन एक शर्त पर। राजा ने चोरों से कहा कि यदि तुम मेरे सलाहकार तेनालीराम के घर में घुसकर कीमती सामान चुराने में सफल हो गए तो हम तुम्हें रिहा कर देंगे और अपना जासूस नियुक्त कर देंगे। चोरों ने राजा की चुनौती स्वीकार कर ली।
उस रात दो चोर तेनालीराम के घर गए और एक झाड़ी के पीछे छिप गए। रात के खाने के बाद तेनालीराम झाड़ियों में टहल रहे थे तभी उन्हें कुछ सरसराहट सुनाई दी। उसे बगीचे में चोर की उपस्थिति का आभास हुआ।
कुछ देर बाद वह घर में दाखिल हुआ और अपनी पत्नी से ऊंची आवाज में कहा कि दो चोर भाग रहे हैं और उसे अपने कीमती सामान से सावधान रहना चाहिए। उसने अपनी पत्नी से सारा सोना, चांदी और आभूषण एक बक्से में रखने को कहा। चोर तेनाली और उसके पत्नी के बीच की बातचीत सुन लेते हैं।
कुछ देर बाद तेनालीराम उस बक्से को अपने घर के पीछे वाले कुएं में ले गया और वहां फेंक दिया। चोरों ने यह सब देख लिया। जैसे ही तेनाली अपने घर में दाखिल हुआ, दो चोर कुएं के पास पहुंचे और उसमें से पानी निकालने लगे। वे सारी रात पानी ढोते रहे। सुबह तक वे बक्सा निकालने में कामयाब रहे, लेकिन अंदर पत्थर देखकर चौंक गए। तब तेनालीराम ने बाहर आकर चोरों से कहा कि वह बहुत आभारी है कि उन्होंने हमें रात को चैन से सोने दिया और मेरे पौधों को पानी दिया। दोनों चोरों को एहसास हुआ कि तेनालीराम ने उन्हें धोखा दिया है। उन्होंने तेनालीराम से माफ़ी मांगी और उन चोरों को रिहा कर दिया।
कहानी से सीख:
कहानी से नैतिक शिक्षा ये मिलती है कि आपको हमेशा गलत चीजों को स्वीकार करने से बचना चाहिए।