पौराणिक कथा

तुलसी माता की व्रत कथा

तुलसी माता की व्रत कथा

प्राचीन काल में राक्षसों के कुल में वृंदा नाम की कन्या का जन्म हुआ। दैत्यराज कालनेमी जैसे राक्षस परिवार में पैदा होने के बाद भी वृंदा भगवान विष्णु की पूजा करती थी। जब वृंदा बड़ी हुई तो उसका विवाह जलंधर नामक राक्षस से हुआ।

जलंधर भगवान शिव के तेज से समुद्र से उत्पन्न हुआ एक अत्यंत शक्तिशाली राक्षस था। जलंधर शक्तिशाली था इसलिए उसे राक्षस कुल का राजा बना दिया गया। वृंदा से विवाह के बाद जलंधर की पराक्रम और शक्ति लगातार बढ़ती गई। उसे किसी भी तरह से हराना मुश्किल था।

जलंधर के बढ़ते अहंकार और आतंक से सभी देवता चिंतित थे। जलंधर की बढ़ती शक्ति का कारण उसकी पत्नी वृंदा की विष्णु के प्रति भक्ति और पवित्रता थी। अंततः जलंधर अपनी शक्ति और अहंकार के नशे में चूर होकर स्वर्गीय देवी-देवताओं को अपने वश में करने का प्रयास करने लगा।

इसी दौरान एक बार उन्होंने देवी लक्ष्मी को पाने की कोशिश की, लेकिन समुद्र से जन्म लेने के कारण देवी लक्ष्मी ने उन्हें अपना भाई बना लिया। तभी उसकी नजर माता पार्वती पर पड़ी और जलंधर ने उन्हें पाने के लिए माया रची।

जलंधर ने अपनी माया से शिव का रूप धारण किया और माता पार्वती के पास जाने लगा। उसी समय माता पार्वती ने उसे पहचान लिया और इससे पहले कि जलंधर कुछ समझ पाता, वह अदृश्य हो गईं।

जलंधर के ऐसे बुरे व्यवहार से पार्वती जी बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने सारी बात भगवान विष्णु को बता दी। इधर जलंधर ने कैलाश पर्वत पर भगवान शिव से पार्वती के लिए युद्ध किया।

तब भगवान विष्णु ने जलंधर को सबक सिखाने का निश्चय किया। सभी जानते थे कि जलंधर अपनी पत्नी की भक्ति और सतीत्व के कारण ही अजेय बना है। ऐसे में जलंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी का पतिव्रत धर्म तोड़ने के लिए एक मायावी चाल का सहारा लिया।

कहानी से सीख : छल, कपट या फिर अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने वाले व्यक्ति का विनाश होना तय है।