तेनालीराम की कहानी: रिश्वत का खेल
विजयनगर के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में कलाकारों का बहुत सम्मान किया जाता था। उनके दरबार में संगीतकारों, गीतकारों, कवियों और नर्तकों का तांता लगा रहता था। उन सभी ने दरबार में अपनी कला प्रस्तुत की और बदले में पुरस्कार प्राप्त किया। किसी भी कलाकार को कोई भी पुरस्कार या धन देने से पहले महाराज हमेशा तेनालीराम से सलाह लेते थे। वह जानता था कि तेनालीराम न केवल चतुर है बल्कि कला में भी पारंगत है।
तेनालीराम को मिले इस सम्मान से बाकी दरबारियों को ईर्ष्या हुई। दरबारियों ने राजा से तेनालीराम पर विश्वास न करने का अनुरोध किया। तेनालीराम एक बार दरबार में उपस्थित नहीं हो सके। दरबारियों ने तेनालीराम की अनुपस्थिति का फायदा उठाया और राजा के कान भरने लगे। और राजा से कहा, “महाराज तेनालीराम बहुत झूठा आदमी है। जिस भी कलाकार को उन्हें सम्मान दिलाना होता है उनसे पहले ही रिश्वत ले ली जाती है. इसलिए इस मामले में उनसे सलाह न लें। जब तेनालीराम चार-पाँच दिनों तक दरबार में उपस्थित नहीं हुआ तो दरबारियों ने राजा से फिर वही बात कही। सभी दरबारियों के बार-बार अनुरोध करने पर राजा को भी तेनालीराम पर संदेह हो गया।
कुछ दिनों बाद जब तेनालीराम दरबार में उपस्थित हुआ तो उसने महाराज को कुछ व्याकुल पाया। तेनालीराम ने देखा कि महाराजा अब पुरस्कार देने से पहले सलाह नहीं लेते। जब तेनालीराम ने यह देखा तो वह बहुत दुखी हुआ। फिर एक दिन राज दरबार में गायन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता ख़त्म होते ही तेनालीराम ने कहा, “एक गायक को छोड़कर बाकी सभी को पुरस्कार मिलना चाहिए,” लेकिन राजा ने तेनालीराम की बात को अनसुना कर दिया और ठीक इसका उल्टा किया। उन्होंने एक गायक को पुरस्कार दिया और बाकी सभी को खाली हाथ लोटा दिया। तेनालीराम के लिए यह बहुत अपमानजनक था। तेनालीराम के इस अपमान से सभी दरबारी बहुत प्रसन्न हुए।
कुछ दिनों बाद एक अत्यंत मधुर गायक अपनी कला का प्रदर्शन करने दरबार में आया। राजा की आज्ञा पाकर उसने गाना शुरु किया। उसकी आवाज़ और सुर ताल बहुत ही मधुर थे. उस दिन उन्होंने दरबार में कई गीत गाए, जिससे पूरी राजसभा भाव विभोर हो गयी| जब उन्होंने गाना समाप्त किया, तो श्रीमान तेनालीराम ने गायक से कहा ऐसा गाना मेने अपने जीवन में कभी नहीं सुना, “इस प्रतिभा के लिए तुम्हें 15,000 सोने के सिक्के मिलने चाहिए।”
तेनालीराम की बात सुनकर राजा ने कहा, “तुम्हारी कला सचमुच अद्भुत है, लेकिन हमारे खजाने में किसी गायक के लिए इतना धन नहीं है, इसलिए तुम अभी जा सकते हो।” उसके संगीत वाद्ययंत्र को उठाया और वहा से जाने लगे। तेनालीराम को इस प्रतिभाशाली गायक की हालत पर बहुत दुःख हुआ। भरे दरबार में उन्होंने गायक को एक पोटली दी। यह देखकर सभी दरबारियों ने विरोध करना शुरू कर दिया। सभी ने एक स्वर से कहा: यदि राजा ने गायक को कुछ नहीं दिया तो तेनालीराम ये खैरात देने वाला कौन होता है? राजा भी तेनालीराम की इस हरकत पर बहुत क्रोधित हुए। उसने सेवकों को आदेश दिया कि गायक से पोटली छीनकर उसके पास ले आओ।
सेवक पोटली लेकर राजा के पास आये। राजा ने पोटली खोली तो अंदर मिट्टी का एक बर्तन था। जब राजा ने मिट्टी का बर्तन देखा तो उन्होंने तेनालीराम से पूछा: तुम यह बर्तन गायक को क्यों देना चाहते हो? तेनालीराम ने कहा, “महाराजा, यह बेचारा गायक पुरस्कार तो नहीं ले सका, लेकिन कम से कम वह प्रशंसा से भरा यह मिट्टी का बर्तन लेकर इस दरबार से खाली हाथ नहीं जाएगा।” तेनालीराम के मुँह से यह उत्तर सुनकर। राजा को उसकी दरियादिली और ईमानदारी का ज्ञान हुआ। उसका गुस्सा गायब हो गया और राजा ने गायक को 15,000 सोने के सिक्के दिए।
इस प्रकार तेनालीराम ने अपनी बुद्धिमत्ता और ईमानदारी से राजा का विश्वास पुनः प्राप्त कर लिया। और वही तेनालीराम के विरोधी मुँह छोटा किये खड़े देखते रहे।
इतिहास का पाठ
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अंत में सत्य की हमेशा जीत होती है और उसे सम्मान मिलता है।