तेनालीराम की कहानी : संतुष्ट व्यक्ति के लिए उपहार |
महाराज कृष्णदेव राय तेनालीराम की बुद्धिमत्ता और चतुराई से सदैव प्रसन्न रहते थे और समय-समय पर तेनालीराम को उपहार देते थे। इन उपहारों को इकट्ठा करके तेनालीराम ने भी बहुत धन इकट्ठा कर लिया।
एक दिन जब वह राज दरबार में पहुंचा तो उसने महंगे कपड़े और आभूषण पहने हुए थे। जब राजा ने यह देखा तो बोले, “तेनाली! क्या आप जानते हैं कि आपके पहनावे और जीवनशैली में काफी बदलाव आया है? पहले तो आपके कपड़े बहुत साधारण हुआ करते थे। क्या हुआ है?”
तेनालीराम ने उत्तर दियाः “महाराज! लोगों के कपड़े और जीवनशैली एक विशेष भूमिका निभाते हैं, जो समय और पैसे के साथ बदलते हैं। मैंने आपके काफी उपहार सहेज कर रखे हैं। अगर मैं इसे खर्च करूंगा तो ही मैं ये कपड़े पहन पाऊंगा।”
महाराज ने कहा, “इसका मतलब यह हुआ की तुम्हारे पास पर्याप्त धन है। ऐसे में आपको दान-पुण्य करना चाहिए।”
यह सुनकर तेनालीराम पीछे मुड़ा और बोला, “महाराज!” मेरे पास धन जरूर है. लेकिन इतना नहीं की दान पुण्य करू
तेनालीराम की इन बातों से महाराज क्रोधित हो गये। उन्होंने उन्हें फटकार लगाते हुए कहा कि राष्ट्रीय सलाहकार के पद पर रहते हुए भी ऐसी बाते करना अनुचित है.
तेनालीराम क्या करता? उसने क्षमा मांगते हुए कहा, “महाराज! माफ़ करें। मैं जरूर दान करूंगा. कृपया मुझे बताएं कि मुझे क्या दान करना चाहिए।”
महाराजा ने उन्हें एक भव्य भवन बनाने और उसे दान करने की सलाह दी। महाराज की सलाह पर तेनालीराम ने अपनी सहमति दे दी।
उस दिन से तेनालीराम एक भव्य भवन के निर्माण में लग गया। कुछ ही महीनों में भवन बनकर तैयार भी हो गई. अब इसे दान करने का समय आ गया है. लेकिन किसे ? ऐसे किसी को भवन दे देना अनुचित था।
सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद, तेनालीराम ने इमारत के सामने एक पट्टिका लगा दी, जिस पर लिखा था: “जो कोई भी अपने पास मौजूद हर चीज से खुश और संतुष्ट है, वही इस भवन को दान में लेने का पात्र है।”
समय बीतता गया, लेकिन कोई भी तेनालीराम के पास भवन को दान में मांगने नहीं आया। एक दिन एक गरीब आदमी इस भवन के पास से गुजरा और उस पर लगे चिन्ह को अपनी आँखों से पढ़ा।
इस तख्ती को पढ़ने के बाद उसने सोचा कि इस नगर के लोग कितने मूर्ख हैं जो इस भवन को दान में मांगने नहीं जाते। क्यू न में ही इस भवन को दान में मांग लू ? वह तेनालीराम के पास पहुंचे और भवन को दान में मांगने की याचना करने लगे।
“क्या आपने भवन पर लगी पट्टिका पढ़ी?” तेनालीराम ने पूछा।
“हाँ, मैंने हर शब्द पढ़ा,” गरीब आदमी ने कहा।
“तो क्या अब आपके पास जो है उससे आप खुश हैं?” तेनालीराम ने फिर पूछा।
गरीब आदमी ने उत्तर दिया: मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं।
“फिर आपको इस भवन की आवश्यकता क्यों है? यदि आपको इसकी आवश्यकता है, तो यह कहना गलत है कि आपके जीवन में जो कुछ भी आपके लिए उपलब्ध है, आप उससे संतुष्ट हैं। ऐसी स्थिति में आप यह भवन दान में पाने के पात्र नहीं हो।”
तेनालीराम की बात सुनकर वह बेचारा उदास चेहरा लेकर चला गया। उसके बाद इस भवन को कोई दान में मांगने नहीं आया।
कई दिनों के बाद भी जब महाराज को यह पता चला कि भवन दान में नहीं दिया गया है तो उन्होंने तेनालीराम को बुलाया और पूछा कि इसका क्या कारण है।
तेनालीराम पूरी कहानी बताता है। महाराजजी ने जब सुना कि तेनालीराम को अपनी बुद्धिमत्ता के कारण कोई दान नहीं देना पड़ा तो वे हँस पड़े।
फिर उसने पूछा कि वह इस भवन का क्या करेगा, तो तेनालीराम ने कहा, “किसी दिन शुभ मुहूर्त देखकर मैं गृह प्रवेश करूंगा।”