नाली रामा की कहानियां: शिकारी झाड़ियां
हर वर्ष ठंड के मौसम में महाराज कृष्णदेव नगर के बाहर डेरा डालते थे। इस दौरान महाराजा और उनके कुछ दरबारी और सैनिक उनके साथ तंबू में रहते थे। उस समय, राजा सरकारी काम काज को छोड़, वे संगीत कार्यक्रम आयोजित करते थे और कभी-कभी कहानियों का आदान-प्रदान करते थे।
ऐसी सुहावनी शाम को महाराजा ने शिकार पर जाने की सोची। राजा ने दरबारियों से शिकार की तैयारी शुरू करने को कहा। इसके बाद अगली सुबह महाराजा अन्य दरबारियों और सैनिकों के साथ शिकार के लिए निकले।
तेनालीराम महाराज के प्रिय थे और राजा ने उसे शिकार पर अपने साथ चलने के लिए कहा। राजा की बात सुनकर दरबारी ने कहा, “उसे छोड़ दीजिए महाराज, तेनालीराम बूढ़ा है और अगर वह शिकार करने भी जाएगा तो जल्दी ही थक जाएगा।” दरबारी की बातें सुनकर सभी हंसने लगे, लेकिन तेनालीराम कुछ नहीं बोला। इस बीच, राजा ने तेनालीराम से कहा कि वह अपने दरबारियों की बातों पर ध्यान न दे और उनके साथ शिकार पर चले।
महाराज की सलाह मानकर तेनाली भी एक घोड़े पर सवार होकर काफिले के साथ चल दिये। कुछ देर बाद महाराज का काफिला जंगल के बीच में पहुंच गया। शिकार की तलाश में राजा को पास ही एक हिरण दिखाई दिया। जैसे ही राजा ने हिरण पर निशाना साधने के लिए अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, हिरण भाग गया और राजा अपने घोड़े पर सवार होकर उसका पीछा करने लगा।
जब तेनालीराम ने महाराजा को हिरण का पीछा करते देखा तो वह अन्य दरबारियों के साथ मिलकर महाराजा का पीछा करने लगा। राजा ने जैसे ही हिरण को देखा तो वह घनी झाड़ियों की ओर बढ़ने लगा। महाराज निशाना साधने के लिए हिरण के पीछे झाड़ियों में चले गये। तभी तेनालीराम ने पीछे से आवाज़ दी और महाराज को रुकने के लिए कहा।
तेनालीराम की आवाज से महाराज का ध्यान भटक गया और उनका निशाना चूक गया। जैसे ही हिरण झाड़ियों में चला गया, राजा ने पीछे मुड़कर तेनालीराम की ओर देखा। महाराज ने तेनालीराम को डांटा और पूछा कि उसने उसे झाड़ियों में क्यों नहीं जाने दिया। क्रोधित राजा कृष्णदेव ने कहा कि तेनालीराम की वजह से हिरण का शिकार नहीं कर पाये।
महाराज की डांट सुनकर भी तेनालीराम चुप रहा। जब राजा चुप हो गए, तो तेनालीराम ने अपने सैनिकों से एक पेड़ पर चढ़ने और झाड़ियों के पार देखने को कहा। तेनालीराम की सलाह पर सिपाही ने देखा कि महाराज जिस हिरण का शिकार कर रहे थे वह एक कंटीली झाड़ी में फंस गया था और उसे बहुत खून बह रहा था। काफी देर तक संघर्ष करने के बाद भी हिरण कंटीली झाड़ियों के बीच से भागने में सफल रहा और लड़खड़ाते हुए जंगल में चला गया।
पेड़ से उतरकर सिपाही ने आखो देखी बात राजा को सुनाई । सिपाही की बात सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने तेनालीराम को पास बुलाया और पूछा कि क्या उन्हें पहले से पता था कि वहाँ कंटीली झाड़ियाँ हैं। राजा की बात सुनकर तेनालीराम ने कहा, “जंगल में ऐसी कई झाड़ियाँ हैं जो किसी भी व्यक्ति को लहूलुहान कर उसे अधमरा कर सकती हैं।” मुझे संदेह था कि आगे ऐसी ही “शिकारी झाड़ियाँ” हो सकती हैं।
तेनालीराम की कहानी सुनकर महाराज को एक बार फिर उसकी बुद्धिमत्ता पर यकीन हो गया। महाराज ने अन्य दरबारियों की ओर देखा और कहा कि आप सब नहीं चाहते थे कि तेनालीराम शिकार खेलने आये लेकिन आज उसके कारण मेरी जान बच गयी। महाराज ने तेनालीराम की पीठ थपथपाइ और कहा कि उसकी बुद्धि और समझ का कोई मुकाबला नहीं है।
इस कहानी का नैतिक निष्कर्ष
जल्दबाजी में किए गए कार्य कभी-कभी हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसलिए आपको परिस्थितियों और माहौल को ध्यान से समझकर ही कार्य करना चाहिए।