नैतिक कहानियां

नैतिक कहानियां : लकड़हारा और सुनहरी कुल्हाड़ी की कहानी

नैतिक कहानियां : लकड़हारा और सुनहरी कुल्हाड़ी की कहानी

सालों पहले एक नगर में कुसम नाम का एक लकड़हारा रहता था। वो रोज जंगल लकड़ी काटने के लिए जाता और उन्हें बेचकर जो कुछ पैसे मिलते उससे अपने लिए खाना खरीद लेता था। उसकी दिनचर्या सालों से ऐसी ही चल रही थी। एक दिन लकड़हारी जंगल में बहती एक नदी के बगल में लगे एक पेड़ की टहनियों को काटने के लिए उसपर चढ़ा। उस पेड़ की लकड़ी काटते-काटते उस लकड़हारे की कुल्हाड़ी नीचे गिर गई।

तेजी से लकड़हारा पेड़ से उतरा और अपनी कुल्हाड़ी को ढूंढने लगा। उसे लगा था कि नदी के आसपास उसकी कुल्हाड़ी गिरी होगी और ढूंढने पर मिल जाएगी। वास्तव में ऐसा कुछ हुआ नहीं, क्योंकि उसकी कुल्हाड़ी पेड़ से सीधा नीचे नदी में जा गिरी थी। वो नदी काफी गहरी और तेज बहाव वाली थी।

आधे से एक घंटे तक लकड़हारा अपनी कुल्हाड़ी को ढूंढता रहा, लेकिन जब लकड़ी नहीं मिली, तो उसे लगने लगा कि अब उसकी कुल्हाड़ी उसे कभी वापस नहीं मिलेगी। इससे वो काफी दुखी हो गया। लकड़हारे को पता था कि उसके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वो नई कुल्हाड़ी खरीद सके। अब वो अपनी स्थिति पर नदी किनारे बैठे-बैठे रोने लगा। लकड़हारे की रोने की आवाज सुनकर वहां नदी देवता आ गए।

उन्होंने लकड़हारे से पूछा, ‘बेटा! क्या हो गया तुम इतना क्यों रो रहे हो। कुछ खो दिया है क्या तुमने इस नदी में? नदी के देवता के सवाल सुनते ही लकड़हारे ने उन्हें अपनी कुल्हाड़ी गिरने की कहानी सुना दी। नदी के देवता ने पूरी बात सुनते ही कुल्हाड़ी को ढूंढने में लकड़हारे की मदद करने की बात कही और वहां से चले गए।

कुछ देर बाद नदी के देवता नदी से बाहर निकलकर आए और उन्होंने लकड़हारे से कहा कि मैं तुम्हारी कुल्हाड़ी लेकर आ गया हूं। नदी के देवता की बातें सुनकर लकड़हारे के चेहरे पर मुस्कान आ गई। तभी लकड़हारे ने देखा कि नदी के देवता ने अपने हाथों में सुनहरी रंग की कुल्हाड़ी ले रखी है। दुखी मन से लकड़हारे ने कहा, ‘यह सुनहरी रंग की कुल्हाड़ी मेरी तो बिल्कुल भी नहीं है। यह सोने की कुल्हाड़ी जरूर किसी अमीर इंसान की रही होगी। लकड़हारे की बात सुनकर नदी के देवता दोबारा से गायब हो गए।

कुछ देर बाद नदी के देवता दोबारा नदी से बाहर निकले। इस बार उनके हाथों में चांदी की कुल्हाड़ी थी। उस कुल्हाड़ी को देखकर भी लकड़हारे को खुशी नहीं हुई। उसने कहा कि ये भी मेरी कुल्हाड़ी नहीं है। ये किसी दूसरे इंसान की कुल्हाड़ी होगी। आप उसी को ये कुल्हाड़ी दे दीजिएगा। मुझे तो अपनी ही कुल्हाड़ी ढूंढनी है। इस बार भी लकड़हारे की बात सुनकर नदी के देवता फिर वहां से चले गए।

पानी में गए भगवान इस बार काफी देर बाद बाहर आए। अब देवता को देखते ही लकड़हारे के चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान थी। उसने नदी के देव से कहा कि इस बार आपके हाथ में लोहे की कुल्हाड़ी है और लग रहा है कि ये मेरी ही कुल्हाड़ी है। ऐसी ही कुल्हाड़ी पेट काटते समय मेरे हाथ से नीचे गिर गई थी। आप ये कुल्हाड़ी मुझे दे दीजिए और दूसरी कुल्हाड़ियों को उनके असली मालिक तक पहुंचा दीजिए।

लकड़हारे की इतनी ईमानदारी और निष्पाप मन को देखकर नदी के देवता को काफी अच्छा लगा। उन्होंने लकड़हारे से कहा कि तुम्हारे मन में बिल्कुल भी लालच नहीं है। तुम्हारी जगह कोई और होता, तो सोने की कुल्हाड़ी झट से ले लेता, लेकिन तुमने ऐसा बिल्कुल भी नहीं किया। चांदी की कुल्हाड़ी को भी तुमने लेने से इनकार कर दिया। तुम्हें सिर्फ अपनी लोहे की ही कुल्हाड़ी चाहिए थी। तुम्हारे इतने पवित्र और सच्चे मन से मैं काफी प्रभावित हूं। मैं तुम्हें उपहार में सोने और चांदी दोनों की ही कुल्हाड़ी देना चाहता हूं। तुम अपनी लोहे की कुल्हाड़ी के साथ इन्हें भी अपने पास अपनी ईमानदारी के तोहफे के तौर पर रख लो।

कहानी से सीख

ईमानदारी से बड़ी दौलत इस दुनिया में कुछ नहीं है। अच्छे ईमान वाले इंसान की चारों तरफ प्रशंसा होती है।

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