नैतिक कहानियां : हंस और मूर्ख कछुआ की कहानी
जंगल के बीच में एक तालाब था जहाँ जानवर अपनी प्यास बुझाने आते थे। उसी तालाब में एक कछुआ भी रहता था। सभी जानवर उसे “बातूनी कछुआ” कहते थे क्योंकि वह बहुत बातें करता था, लेकिन ये दोनों हंस उसके बहुत अच्छे दोस्त थे और हमेशा उसका भला चाहते थे।
गर्मियों में तालाब का पानी धीरे-धीरे सूखने लगा। सभी जानवर अब पानी पिने के लिए तरसने लगे हैं. जब हंसों ने यह देखा तो उन्होंने कछुए से कहा कि तालाब में पानी कम हो गया है और यह जल्द ही सूख सकता है। बेहतर होगा कि यह तालाब छोड़ कर कहीं और चला जाए।
इस पर कछुए ने कहा कि मैं यह तालाब छोड़कर कैसे जा सकता हूं और यहां आसपास कोई तालाब भी नहीं है, लेकिन हंस अपने दोस्त का भला चाहते थे। उन्होंने अपने दोस्त की मदद कर के लिए खूब सोचा और एक तरकीब निकाली।
हम दोनों हंस, तुम्हारे लिए एक छड़ी लाते हैं, तुम छड़ी के बीच वाले भाग को अपने मुँह में रखो, हम दोनों छड़ी का एक सिरा पकड़ते हैं और हम तुम्हें यहाँ से दूर एक बड़े तालाब के पास ले जाते हैं। उसने कहा उस तालाब में भरपूर पानी है और यह कभी नहीं सूखता।
कछुए ने उसका अनुरोध स्वीकार कर लिया और हंस के साथ जाने को तैयार हो गया। इससे पहले कि वह उड़ता, हंस ने उसे रास्ते में कुछ भी न कहने की चेतावनी दी। जब वह बड़े तालाब के पास पहुंचे तभी वह बोल सकता है कि वह क्या चाहता है।
कछुए ने “हाँ” उत्तर दिया और लकड़ी को पकड़ लिया। दोनों हंस हाथों में लकड़ी लेकर उड़ गए। वो उड़ते हुए एक गांव के ऊपर से निकले। गांव वालों ने ऐसा पहली बार देखा था। सभी तालियां बजाने लगे। यह देखकर कछुए से रहा नहीं गया और बाेला कि नीचे क्या हो रहा है?
जैसे ही उसने बोलने के लिए मुंह खोला, लकड़ी उसके मुंह से फिसल गयी और वह गिर गया। कछुआ काफी ऊंचाई से गिरा इसलिए मर गया और हंस अफसोस के साथ यहां से चले गए।
कहानी से सिख :
हमें बिना मतलब के कुछ भी नहीं बोलना चाहिए। परिणामस्वरूप हमें नुकसान ही उठाना पड़ता है।