नैतिक कहानियां

नैतिक कहानिया : बगुला भगत और केकड़ा

नैतिक कहानिया : बगुला भगत और केकड़ा

यह कहानी एक जंगल की है जहाँ एक आलसी बगुला रहता था। वह इतना आलसी था कि, काम तो दूर की बात है, वह अपने लिए भोजन खोजने में भी बहुत आलसी था। अपने आलस्य के कारण बगुले को कभी-कभी पूरा दिन भूखा रहना पड़ता था। सारा दिन बगुला नदी किनारे एक पैर पर खड़ा होकर यही सोचता रहा कि बिना मेहनत के भोजन कैसे प्राप्त किया जाए।

एक बार की बात है बगुले ने ऐसी ही एक योजना बनाई और उसे एक युक्ति सूझी। उन्होंने तुरंत इस योजना को क्रियान्वित करना शुरू कर दिया। वह नदी के किनारे एक कोने पर खड़ा होकर रोने लगा। जब केकड़े ने देखा कि वह बगुला रो रहा है तो वह उसके पास आया और पूछा, “अरे बगुला भाई, क्या हुआ?” क्यों रो रहे हो? जब बगुले ने उसकी बातें सुनी तो रोते हुए बोला , “क्या बताऊँ केकड़े भाई, मुझे अपने किये पर बहुत पश्चाताप हो रहा है।” अपनी भूख मिटाने के लिए मैंने आज तक न जाने कितनी मछलियों को मारा है। मैं कितना स्वार्थी था, लेकिन आज मुझे इस बात का एहसास हो गया है और मैंने यह वचन लिया है कि अब मैं एक भी मछली का शिकार नहीं करूंगा।”

बगुले की बात सुनकर केकड़ा बोला, “अगर तुम ऐसा करोगे तो भूखे मर जाओगे।” इस पर बगुले ने उत्तर दिया, “किसी और की जान ले करके अपना पेट भरने से तो भूखा मर जाना ही बेहतर है भाई।” मैं कल एक त्रिकालीन बाबा से मिला और उन्होंने मुझसे कहा कि जल्द ही 12 साल का सूखा पड़ेगा जिससे हर कोई मर जाएगा। केकड़े ने जाकर तालाब के सभी प्राणियों को इसके बारे में बताया।

“अच्छा, तो इसका समाधान क्या है?” कछुए ने आश्चर्य से पूछा। बागुला भगत ने कहा: यहां से कुछ कोस दूर एक तालाब है, हम सभी उस तालाब में रह सकते हैं। वहां का पानी कभी नहीं सूखता। मैं एक-एक को अपनी पीठ पर बैठा कर वहां छोड़कर आ सकता हूं।” उसकी यह बात सुनकर सारे जानवर खुश हो गए।

अगले दिन से, बगुले हर एक जीवित प्राणी को अपनी पीठ पर ले जाने लगे। वह उन्हें नदी से कुछ दूर ले जाता और एक चट्टान के पास ले जाकर उन्हें मार डालता। कभी तो वो एक ही समय में दो जानवरों को पकड़ लेता था और पेट भरकर भोजन करता उस चट्टान पर उस जीवों की हड्डियों का ढेर लगने लगा था। बगुला अपने मन में सोचा करता था कि दुनिया भी कैसे मूर्ख है। इतनी आसानी से मेरी बातों में आ गए।

इसमें कई दिन लग गए. एक दिन केकड़े ने बगुले से कहा. “भाई बगुला, क्या तुम हर दिन किसी को अपने साथ ले जाते हो?” तो बताओ मेरा नंबर कब आएगा बगुला बोला, “ठीक है, मैं आज तुम्हें ले चलूँगा।” इतना कहकर उसने केकड़े को अपनी पीठ पर बिठाया और उड़ गया।

जब वे कुछ दूर चट्टान पर पहुँचे, तो केकड़े ने वहाँ अन्य जीवो की हड्डियाँ देखीं और उसका दिल तेजी से धड़कने लगा। उसने तुरंत बगुले से पूछा कि ये हड्डियाँ किसकी हैं और वह जलाशय और कितनी दूर है। उसकी बातें सुनकर बगुला जोर-जोर से हंसने लगा और बोला, “कोई जलाशय नहीं है और ये सब तुम्हारे साथियों की हड्डियाँ हैं जिन्हें मैंने खाया है।” इन सभी हड्डियों में अब तुम्हारी हड्डियां भी शामिल होने वाली हैं।”

जब केकड़े ने यह सुना तो उसने अपने पंजों से बगुले की गर्दन पकड़ ली। कुछ देर बाद बगुला मर गया। तब केकड़ा नदी पर लौट आया और अपने बचे हुए साथियों को सारी बात बता दी। सभी ने केकड़े को धन्यवाद दिया और सबने उसकी जय जयकार की।

कहानी से सिख :
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी पर भी आंख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। कठिन समय में भी आपको संयम और समझदारी से काम लेना चाहिए।

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