महाभारत की कहानी: भीष्म पितामह के पांच चमत्कारी तीर
यह घटना उस समय घटित हुई जब कुरूक्षेत्र में कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध छिड़ा हुआ था। पितामह भीष्म ने कौरवों की ओर से युद्ध लड़ा था, लेकिन कौरवों के बड़े भाई दुर्योधन को लगता था कि पितामह भीष्म पांडवों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते थे। दुर्योधन का मानना था कि पितामह भीष्म बहुत शक्तिशाली है और उनके लिए पांडवों को मारना बहुत आसान था।
इन्हीं विचारों में डूबा दुर्योधन भीष्म पितामह के पास गया। दुर्योधन ने भीष्म पितामह से कहा कि आप पांडवों को मारना नहीं चाहते इसलिए शक्तिशाली हथियारों का प्रयोग नही कर रहे। जब भीष्म ने दुर्योधन की बातें सुनीं तो उन्होंने कहा, ‘अगर तुम ऐसा सोचते हो तो कल मैं पांचों पांडवों को मार गिराऊंगा।’ मेरे पास पाँच अद्भुत तीर हैं जिनका उपयोग मैं कल युद्ध में करूँगा।” दुर्योधन ने कहा “मुझे आप पर भरोसा नहीं है, इसलिए कृपया मुझे ये पाँच अद्भुत तीर दे दीजिए।” मैं उन्हें अपने कक्ष में सुरक्षित रखूंगा।” भीष्म ने ये पांचों तीर दुर्योधन को दे दिये।
इसी बीच श्रीकृष्ण को इसकी जानकारी मिल गई। उन्होंने इसकी सूचना अर्जुन को दी। यह सुनकर अर्जुन डर जाता है और सोचता है कि इस समस्या से कैसे बचा जाए।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को याद दिलाया कि जब तुमने दुर्योधन को गंधर्वों से बचाया था, तब दुर्योधन ने कहा था कि इसके बदले में तुम मुझसे जो चाहो मांग सकते हो। अब सही समय है. तुम दुर्योधन से ये पांच चमत्कारी तीर मांग लो । इससे आपकी और आपके भाई की जान बच जायेगी.
अर्जुन का मानना था कि श्रीकृष्ण की सलाह बिल्कुल सही थी। उन्हें दुर्योधन का वचन याद आ गया. ऐसा कहा जाता है कि उस समय सभी अपने वादे निभाते थे। वादा तोड़ना नियम के खिलाफ माना जाता था। जब अर्जुन ने दुर्योधन को उसका वादा याद दिलाया और पांच तीर मांगे तो दुर्योधन मना नहीं कर सका। दुर्योधन ने अपना वचन निभाया और तीर अर्जुन को दे दिये । इस प्रकार श्रीकृष्ण ने अपने भक्त पांडवों की रक्षा की।