मुंशी प्रेमचंद की कहानी

मुंशी प्रेमचंद की कहानी : दो बैलों की कथा

मुंशी प्रेमचंद की कहानी : दो बैलों की कथा

एक समय की बात है, एक गाँव में जूरी नाम का एक किसान रहता था। उसके पास हीरा और मोती नामक दो बैल थे। दोनों बैल मजबूत और शक्तिशाली थे। जूरी को वे दोनों बहुत पसंद आये. दोनों बैल भी जूरी को बहुत पसंद करते थे ।

हीरा और मोती एक-दूसरे से इतने जुड़े हुए थे कि यदि एक न खाता, तो दूसरा घास भी नहीं छूता था। एक दिन जूरी की पत्नी का भाई गाय दोनों बैलों को अपने साथ ले गया। दोनों बैल इस बात से हैरान थे कि उन्हें गया के हवाले क्यों किया गया है।

शाम को वे दोनों नये घर में और नये लोगों के बीच थे, लेकिन वहां सब कुछ उन्हें अजीब लग रहा था। रात को जब सब सो रहे थे तो वे दोनों रस्सी तोड़कर जूरी के घर की ओर भागे। सुबह-सुबह जब जूरी ने उसे अपने घर पर देखा तो दौड़कर उससे लिपट गयी।

यह सब देखकर जूरी की पत्नी बिल्कुल भी खुश नहीं थी। उसने उन दोनों को बहुत डांटा और निश्चय किया कि वे दोनों सूखा भूसा ही खायेंगे। अगले दिन “गया” वापस आया और अपने साथ दो बैल भी ले गया।

कल की बात से गया को बहुत क्रोध आया और उसने उन दोनों को खाने के लिए केवल सूखा भूसा दिया। किसी तरह रात कटी और सुबह उन दोनों को खेत में जुताई के लिए ले जाया गया। हालाँकि, ऐसा लगता है कि दोनों ने अगला कदम न उठाने की कसम खा ली है। दोनों को बुरी तरह पीटा जाता था और शाम को खाने में केवल भूसा दिया जाता था।

वे दोनों निराश होकर वहीं खड़े रहे, तभी अचानक एक छोटी लड़की आई, उसने दोनों को रोटियाँ खिलाई और चली गई। रोटी से दोनों का पेट तो नहीं भरा, लेकिन दिल जरूर भर गया। पता चला कि लड़की की असली मां की मौत के बाद वह उसकी सौतेली माँ के साथ रहती थी। उसकी सौतेली माँ उसे लगातार पीटती थी। शायद यही वजह थी कि उसे बैलों के लिए अपनापन था।

वे दोनों चुपचाप उस छोटी लड़की के बारे में सोचने लगे। एक रात उन दोनों ने अपने गले में बंधी रस्सी को चबाकर तोड़ने और वहां से भाग जाने का फैसला किया।

उस रात जब वे रस्सी खोलने लगे तो वही छोटी लड़की आई और उन्हें रस्सी से मुक्त कर दिया। दोनों ने लड़की को अलविदा कहा और भाग गए। इस बीच, ग या को इस बारे में पता चला और वह अपने आदमियों के साथ उन दोनों की तलाश में निकल गई।

हीरा और मोती इतना तेज भागे कि उन्हें अपने घर का रास्ता भी याद न रहा। वे रास्ता भटक गए थे। दोनों को भागते-भागते भूख भी लग पड़ी थी। रास्ते में मटर का एक खेत था, दोनों ने वहां जाकर जमकर मटर खाएं।

अभी दोनों खेत में चर ही रहे थे कि वहां एक सांड आ धमका। दोनों ने हिम्मत दिखाकर उसे वहां से खदेड़ दिया। इतने में मटर के खेत के सेवक हाथों में डंडा लिए आ पहुंचे। हीरा के पास भागने का मौका था, लेकिन जब उसने देखा की सेवकों ने मोती को पकड़ लिया है तो वह लौट गया।

दोनों बैलों को पकड़कर मवेशीखाने में बंद कर दिया गया।

उस मवेशीखाने में बहुत से जानवर कैद थे। वहां कई बकरियां, घोड़े, भैंसे, गधे बंधे थे, लेकिन किसी को भी खाने को कुछ नहीं दिया जाता था। इस वजह से सभी जानवर कमजोरी के कारण जमीन पर बेजान पड़े हुए थे।

जब पूरा दिन बीत जाने पर भी खाने को कुछ न मिला तो हीरा के सब्र का बांध टूट गया। उसने बाड़े की कच्ची दीवार पर जोर से अपने सींग गड़ा दिए। इससे मिट्टी का एक टुकड़ा निकल आया। यह देखकर हीरा को हिम्मत मिली और वह दौड़-दौड़कर अपने सींगों से दीवार की मिट्टी गिराने लगा।

तभी मवेशीखाने का चौकीदार हाथ में लालटेन लिए जानवरों की हाजिरी लगाने आ पहुंचा। हीरा की करतूत देखकर उसने उसकी डंडे से पिटाई शुरू कर दी और उसे मोटी रस्सी से बांध कर वहां से चला गया।

हीरा ने मोती से कहा, “आज अगर यह दीवार गिर जाती तो यहां बंधे हुए कितने ही जानवर आजाद हो पाते। यदि ये थोड़े दिन और यहां रुके तो कमजोरी से इनका मरना निश्चित है।“
यह सुनकर मोती बोला, “अगर ऐसी बात है तो मैं भी जोर लगाता हूं।“

ऐसा कहते ही मोती ने दीवार में उसी जगह वार किया और लगभग दो घंटों की कड़ी मेहनत से दीवार को तोड़कर गिरा दिया।

दीवार के गिरते ही घोड़े, भैंसें, बकरियां सब जल्दी से भाग गईं, लेकिन गधे वहीं खड़े रहे। लाख मनाने पर भी गधे अपने डर की वजह से वहीं खड़े रहे, उधर मोती अपने दोस्त हीरा की रस्सी को तोड़ने की पूरी कोशिश करता रहा।

अब जब सुबह होने वाली थी तो हीरा ने मोती से कहा, “दोस्त, मुझे नहीं लगता कि आज यह रस्सी टूटेगी। तुम यहां से भाग जाओ, वरना सबको पता चल जाएगा कि यह सब तुमने ही किया है। मुझे यहीं छोड़ कर तुम चले जाओ।“

यह सुनकर मोती की आंखों में आंसू आ गए। वह हीरा से बोला, “मित्र! मैं इतना स्वार्थी नहीं हूं कि मुश्किल के इस समय में तुम्हें छोड़कर चला जाऊं। मैं मरते दम तक तुम्हारे साथ ही रहूंगा। मुझे हर अपराध की सजा स्वीकार है। कम से कम इन जानवरों की जान बचाने का आशीर्वाद तो मिलेगा।“

इतना कहकर मोती ने गधों को सींग मारकर बाड़े से भगा दिया और स्वयं हीरा के पास आकर सो गया।

सुबह होते ही चौकीदार, मुंशी व अन्य सेवकों को जब इसकी भनक लगी तो मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बांध दिया गया।

लगभग एक हफ्ते तक दोनों वहीं बंधे रहे, लेकिन उन्हें खाने को कुछ नसीब नहीं हुआ। उन्हें केवल पानी ही पिलाया जाता। दोनों की हड्डियां निकल आई थीं। एक दिन बाड़े के सामने उनकी नीलामी शुरू हुई, लेकिन वो दोनों इतने कमजोर थे कि उन्हें खरीदने के लिए कोई तैयार नहीं था।

तभी एक आदमी सामने आया और दोनों बैलों को टटोलने लगा। मुंशी से कुछ मोल भाव करने के बाद वह उन दोनों को लेकर चल पड़ा। दोनों बैलों की नीलामी हो चुकी थी। हीरा और मोती दोनों डरे हुए थे, उनसे चला भी नहीं जा रहा था, लेकिन डंडे के डर से बेचारे उस आदमी के साथ साथ चलने लगे।

सहसा दोनों को महसूस हुआ कि यह वही रास्ता है जहां से गया उन्हें ले गया था। वही खेत, वही रास्ता और वही कुआं तो है जहां पर वे हल जोतने आया करते थे। अब उनकी सारी थकान दूर होने लगी और वह दोनों तेज-तेज चलने लगे।

जैसे ही उन्हें अपना घर और अपने बांधे जाने के जगह दिखाई दी दोनों भागकर उस ओर चल दिए। द्वार पर झूरी बैठा हुआ था। जैसे ही उसने दोनों बैलों को देखा उसने उन्हें गले लगा लिया। दोनों बैलों की आंखों में आंसू आ गए।

तभी वह आदमी वहां बैलों के पीछे-पीछे पहुंच गया और उसने दोनों बैलों की रस्सियां पकड़ ली।

झूरी बोला, “ये मेरे बैल हैं।“

आदमी ने कहा, “मैंने इन्हें मवेशीखाने की नीलामी से खरीदा है।“

झूरी तपाक से बोला, “मेरे बैलों को बेचने का हक किसी को नहीं है। अगर मैं इन्हें बेचूंगा, तभी ये बिकेंगे।“

आदमी ने जवाब दिया, “मैं थाने में जाकर रपट दर्ज करवाता हूं।“

झूरी बोला, “ये मेरे बैल हैं, इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि यह मेरे द्वार में खड़े हैं।“

फिर उस आदमी ने आव देखा न ताव और बैलों को अपनी ओर खींचने लगा। तब दोनों बैलों ने भी उसे अपने सींगों से खदेड़ दिया और गांव से दूर भगा दिया।

इतनी देर में दोनों बैलों के लिए भूसा, दाना और चारा भर दिया गया। हीरा और मोती दोनों मिलकर चारा खाने लगे। झूरी साथ में खड़ा उन्हें सहला रहा था। तभी झूरी की पत्नी भी अंदर से आई और उसने दोनों बैलों के माथे चूम लिए और खूब प्यार दिया।

कहानी से सीख:

इस कहानी से हम दो बातें सीख सकते हैं: पहली, हमें अपनी आज़ादी के लिए आखिरी क्षण तक लड़ना चाहिए। दूसरा सबक जो हमने सीखा वह यह कि सच्चे दोस्त हमेशा हमारे साथ रहते हैं, चाहे जीवन में हमें कितनी भी कठिनाइयों का सामना करना पड़े।

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