शेखचिल्ली की कहानी : दूसरी नौकरी
शेखचिल्ली का काम में मन नहीं लगता था. ऐसे में शेखचिल्ली के मालिक ने उसे सही से काम नहीं करने की वजह से नौकरी से निकाल दिया। शेख चिल्ली अपनी नौकरी छूट जाने से बहुत दुखी था। अब उसे दूसरी नौकरी की आवश्यकता थी, इसलिए उसने दूसरी नौकरी की तलाश शुरू कर दी। एक दिन नौकरी की तलाश में उसकी मुलाकात एक व्यापारी से हुई। उसने सेठ से नौकरी मांगी और कहा कि में बहुत गरीब हु। मेरे पास जेब खर्च के लिए भी पैसे नहीं है, इसलिए कोई भी काम चल जाएगा। बस मुझे काम पर रख लो.
यह सेठ बहुत चतुर था इसलिए वह शेख चिल्ली को काम पर रखने के लिए तैयार हो गया। लेकिन उन्होंने अपनी शर्तें भी तय कीं. उसने शेख चिल्ली से कहा कि मैं तुम्हें नौकरी पर रखूंगा, लेकिन ऐसा करने के लिए तुम्हें एक इकरारनामे पर हस्ताक्षर करना होगा। इस इकरारनामे में यह लिखा जायगा कि यदि आपने अपने मन से नौकरी छोड़ने का फैसला किया, तो मैं आपकी नाक और कान कटवा दूंगा।
शेखचिल्ली सहमत हो गए, लेकिन उसने भी इकरारनामे में एक शर्त शामिल करने के लिए कहा। शर्त यह थी कि अगर सेठ ने शेखचिल्ली को खुद निकाल दिया तो शेखचिल्ली उसकी नाक और कान काट देगा। कुछ देर विचार करने के बाद सेठ भी शेखचिल्ली की बात मान गया।
दोनों पक्षों के सहमत होने के बाद, इकरारनामा तैयार किया गया और उस पर दोनों के हस्ताक्षर लिए जिससे भविष्य में किसी के लिए भी वादा तोड़ना असंभव हो गया। बाद में शेखचिल्ली सोने के लिए चला गया।
अगले दिन जब शेखचिल्ली उठा तो उसने देखा कि उसकी दाढ़ी और बाल बहुत बढ़े हुए हैं। यह देखकर उन्होंने दाढ़ी और बाल बनाने के बारे में सोचा, पानी में चूना पीसकर मिला दिया।
तब सेठ ने वहाँ आकर इस चूने के पानी से अपना मुँह धोया और सेठ की पत्नी ने भी उससे अपने बाल धोये। नतीजा यह हुआ कि सेठजी के चेहरे पर खुजली और जलन होने लगी। उनकी पत्नी के भी सारे बाल झड़ गये। जब सेठ ने यह देखा तो वह बहुत क्रोधित हुआ। उन्होंने शेख चिल्ली को डांटते हुए पूछा, “यह क्या है?”
शेखचिल्ली ने उत्तर दिया कि मैंने समझौते के विरुद्ध कुछ नहीं किया। तो तुम मुझ पर चिल्ला क्यों रहे हो? शेखचिल्लीके उत्तर से शेठ शांत हो गया और उसने और कुछ नहीं कहा।
शेखचिल्ली ने उत्तर दिया कि मैंने समझौते के विरुद्ध कुछ नहीं किया। तो तुम मुझ पर चिल्ला क्यों रहे हो? शेखचिल्लीके उत्तर से शेठ शांत हो गया और उसने और कुछ नहीं कहा।
अगले दिन, शेखचिल्ली एक बैग लेता है, उसे पत्थरों से भर देता है और सेठ के ऑफिस में रख देता है। यह बैग बिल्कुल उस बैग की तरह था जिसका इस्तेमाल सेठ अपनी महत्वपूर्ण किताबें रखने के लिए करते थे। जब सेठ ने बैग खोला तो जो देखा उससे वह आश्चर्यचकित रह गया। बैग में किताबों की जगह पत्थरों से भरा था। यह देखकर सेठ के ऑफिस के लोग भी हंसने लगे. इससे सेठ को शर्मिंदगी उठानी पड़ी। अब उन्हें एहसास हुआ कि जिस व्यक्ति को उन्होंने काम पर रखा है वह चतुर और चालाक है, और इसलिए वे इकरारनामे वाली योजना का जवाब इस तरह से दे रहा है ।
समझौते के अनुसार शेख चिल्ली को प्रतिदिन घोड़े को चराकर भी लाना था। एक दिन शेख चिल्ली जब घोड़े को चराने के लिए ले गया तो खुद एक जगह सो गया और घोड़े को चरने के लिए अकेला छोड़ दिया। रात को जब शेख चिल्ली सेठ के घर लौट रहा था तो रास्ते में उसकी मुलाकात एक व्यापारी से हुई।
व्यापारी ने शेख चिल्ली से घोड़ा बेचने को कहा। शेखचिल्ली और सौदागर के बीच 40 रूपये में सौदा तय हुआ। तब शेख चिल्ली ने व्यापारी से पैसे लेकर उसे घोड़ा तो दे दिया, लेकिन घोड़े की पूँछ काट दी।
व्यापारी को घोड़ा बेचने के बाद शेखचिल्ली पैसे और घोड़े की कटी हुई पूँछ लेकर सेठ के पास गया। सेठ के पास पहुँचते ही शेख चिल्ली जोर-जोर से चिल्लाने लगा। जब सेठ ने पूछा कि वह क्यों रो रहा है और चिल्ला रहा है, तो शेखचिल्ली ने उसे घोड़े की पूंछ दिखाई और कहा, “चूहे ने घोड़े को बिल में खींच लिया। जब मैं घोड़े को बचा रहा था, तो मेरे मन में यह पूछ रह गयी।”
इस पर सेठ को बहुत गुस्सा आया, लेकिन वह शेख से कुछ नहीं कह सका। इसका कारण यह था कि इकरारनामे के अनुसार यदि वह शेखचिल्ली को नौकरी से निकालता तो उन्हें शेखचिल्ली से अपने नाक-कान कटवाने पड़ते।
समझौते में यह भी लिखा था कि शेख चिल्ली प्रतिदिन सेठ के घर जलाने के लिए लकड़ियाँ लाएगा। ऐसे में जब शेखचिल्ली तय आदेश के अनुसार लकड़ी लेकर तो आया लेकिन उसने उसे घर में रखी सारी लकड़ियो में आग लगा दी।
इसी दौरान सेठ मंदिर गया. जब वह वापस लौटा तो उसने जला हुआ घर देखा और बहुत दुखी हुआ। उसने शेखचिल्ली से कहा: तुमने घर क्यों जला दिया? अब मैं तुम्हें काम पर नहीं रखूंगा. “
सेठ की यह बात सुनकर शेख चिल्ली ने इकरारनामे की याद दिलाई। सेठ ने तंग आकर अपनी पत्नी से कहा कि इस नौकर ने तो हमें परेशान कर दिया है और मैं चाहकर भी इससे छुटकारा नहीं पा सकता।
सेठ की समस्या को देखते हुए, उसकी पत्नी ने सुझाव दिया कि मैं अपने मायके जाने की तैयारी करती हु। और तुम मुझे छोड़ने के बहाने मेरा सारा सामान एक बक्से में भरके यहाँ से चले जाएंगे। फिर हम लोग यहाँ कभी नहीं लौटेंगे और तुम्हें इस नौकर से छुटकारा मिल जायेगा।
जब सेठ और उसकी पत्नी बात कर रहे थे तो शेख चिल्ली छुपकर उन दोनों की बातें सुन रहा था। वह पहले ही उस बक्से में जाकर बैठ गया था जिसे सेठ अपने साथ ले जाना चाहता था। सुबह होते ही सेठ और उसकी पत्नी बक्सा निकालते हैं और चुपचाप घर से निकल जाते हैं।
घर छोड़कर सेठ सोचता है कि उसे शेखचिल्ली से छुटकारा मिल गया। तभी शेख चिल्ली को पेशाब आई और उसने बक्से में ही पेशाब कर दिया। सेठ ने सोचा कि बक्से में हलवा रखा है शायद घी पिघलकर बाहर आ गया।
सेठ ने डिब्बा उतारकर जमीन पर रखा तो शेख चिल्ली तुरंत डिब्बे से बाहर आ गया। उसने सेठ से कहा कि मैं तुम्हें तब तक नहीं छोड़ूंगा जब तक इकरारनामे के अनुसार तुम्हारे नाक-कान नहीं काट दूंगा।
शेखचिल्ली के सामने आने पर सेठ ने शेखचिल्ली से बक्सा उठाकर जाने को कहा तभी शेखचिल्ली ने इस बात से साफ इनकार कर दिया. शेख ने मना कर दिया तो बेचारा सेठ खुद ही बक्सा लेकर चल दिया।
जब ससुराल कुछ दूर रह गया तो सेठ ने शेख चिल्ली से कहा कि जाओ और ससुराल वालो से कहना की में आया हु और थोड़ी दूरी पर आकर बैठें है। कोई आये और मुझे यहाँ से ले जाये
शेखचिल्ली ने सेठ जी की बात मानते हुए ससुराल जाकर कहा, “सेठ जी बीमार हैं और वो काफी मुश्किल के साथ यहां तक आए हैं। वह यहां से कुछ ही दूरी पर बैठे हैं। कोई जाकर उन्हें ले आओ।”
इस तरह सेठ जैसे-तैसे अपनी ससुराल पहुंच गया। ससुराल में जब खाने का वक्त आया, तो सेठ के सामने बिना तड़के वाली दाल रखी गई। वहीं, शेखचिल्ली को अच्छे पकवान परोसे गए।
इसके बाद रात को सेठ को जब पाखाना लगा तो सेठ जी से शेखचिल्ली ने कहा कि इतनी रात को कहां जाएंगे यहीं जो हांडी रखी है, उसमें पाखाना कर लीजिए। सेठ जी ने शेखचिल्ली की बात मानी और ठीक वैसा ही किया।
सुबह जब सेठ ने शेखचिल्ली को वह हांडी फेंकने को कहा तो शेखचिल्ली ने मना कर दिया। लाचार सेठ खुद ही वो हांडी उठाकर फेंकने चल दिया, लेकिन जैसे ही वो घर की चौखट पर पहुंचा, ठोकर लगने से हांडी छूटकर नीचे गिर गई और आस-पास मौजूद सभी लोगों पर पाखाने के छींटे पड़ गए। इस पर सभी लोग सेठ से दूर होकर थू-थू करते हुए भागे।
कहानी से सीख:
शेखचिल्ली के दूसरे काम की कहानी हमें दिखाती है कि ज्यदा चतूर होना कभी-कभी महंगा पड़ सकता है।