पंचतंत्र की कहानी

पंचतंत्र की कहानी : सांप की सवारी करने वाला मेंढक

पंचतंत्र की कहानी : सांप की सवारी करने वाला मेंढक

वर्षों पहले वरुण पर्वत के पास एक राज्य बसा। उस राज्य में एक बड़ा सा सांप मंदविष भी रहता था। वृद्धावस्था के कारण उसके लिए शिकार ढूँढना आसान नहीं था। एक दिन उसके मन में एक विचार आया। शीघ्र ही वह मेंढ़कों से भरे एक तालाब के पास पहुँच गया।

वह एक पत्थर पर उदास होकर बैठ गया। तभी पास की चट्टान पर बैठे एक मेढक ने उसे देख लिया। थोड़ी देर बाद मेंढक ने साँप से पूछा, “चाचा, क्या बात है आज आप भोजन की तलाश नहीं कर रहे?” आप स्वयं भोजन एकत्र नहीं करोगे। इतना सुनते ही सांप ने रोनी सी सूरत बनाकर मेंढक को कहानी सुनाई।

सांप ने कहा, “मैं आज भोजन की तलाश में किसी मेंढक के पीछे-पीछे जा रहा था।अचानक से मेंढक ब्राह्मणों के झुंड में जाकर छुप गया। मेंढक को भोजन बनाने के चक्कर मैंने गलती से एक ब्राह्मण की बेटी को काट दिया, जिससे उसकी मौत हो गई। ” उस ब्राह्मण ने क्रोधित होकर मुझे शाप दे दिया और कहा, मुझे अपना पेट भरने के लिए मेंढक की सवारी करनी होगी।

जब मेंढक ने यह सुना तो वह तुरंत तालाब में गया और अपने राजा को सारी बात बताई। जब राजा ने कहानी सुनी, तो वह आश्चर्यचकित हो गया और पहले तो इस पर विश्वास नहीं किया, लेकिन कुछ देर सोचने के बाद, मेंढको का राजा जल पाक तालाब से बाहर कूद गया और सांप की फन पर बैठ गया। जब राजा को ऐसा करते देखा तो बाकी मेंढकों ने भी वैसा ही किया।

साँप को एहसास हुआ कि मेंढक तो बस मेरी परीक्षा ले रहे थे। साँप ने सभी को सुरक्षित रूप से अपने फन पर कूदने और उसे इधर-उधर घुमाने की भी अनुमति दी। इसके बाद मेंढक राजा ने कहा, “मुझे किसी की सवारी करने में इतना मजा कभी नहीं आया, जितना सांप कई सवारी करने में आया।” मेंढकों का विश्वास जीतकर सांप धीरे-धीरे उनका साथी बन गया। कुछ दिनों के बाद चतुर साँप ने अपनी चलने की गति धीमी कर दी।

जब मेढकों के राजा जलपाक ने यह देखा तो पूछा, “अरे! “साँप, तुम इतनी धीमी गति से क्यों चल रहे हो?” उत्तर में साँप ने कहा, “सबसे पहले तो, मैं बूढ़ा हूँ और ब्राह्मण के श्राप के कारण बहुत समय से भूखा हूँ। इस वजह से मेरी स्पीड कम हो गई है।” “जब राजा ने यह सुना तो उसने मेंढकों को खाने को कहा। जब साँप ने यह सुना तो वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ। उसने कहा, “राजा, मुझे ब्राह्मण ने शाप दिया है। मैं मेंढक तो नहीं खा सकता, लेकिन अगर आप कह रहे हो तो खा लूंगा। वह प्रतिदिन छोटे-छोटे मेंढक खाने लगा और तंदुरुस्त हो गया।

अब सांप को बिना किसी मेहनत के हर दिन खाना मिल ता है। साँप बहुत प्रसन्न हुआ। मेंढकों को अभी तक साँप की हरकतें समझ नहीं आई थीं। मेढक राजकुमार को भी साँप की योजना का पता नहीं चला। एक दिन मेंढकों के राजा जलपाक को भी सांप ने खा लिया और तालाब में रहने वाले सभी मेंढकों को मार डाला।

कहानी से सिख :
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है: अपने दुश्मन की बातों पर विश्वास करने में जल्दबाजी न करें। इससे निश्चित रूप से आपको और आपके लोगों को नुकसान होगा।’