अकबर बीरबल की कहानी: पेड़ एक और मालिक दो
काफी समय पहले। हर दिन की तरह, सम्राट अकबर दरबार में बैठे और अपनी प्रजा की समस्याएं सुन रहे थे। सभी लोग अपनी समस्याएँ लेकर राजा के सामने आये तभी राघव और केशव नाम के दो पड़ोसी अपनी समस्याएँ लेकर दरबार में आये। उनकी समस्या का कारण उनके घरों के बीच फलों से भरा एक आम का पेड़ था। मामला आम के पेड़ के मालिकाना हक को लेकर था। राघव ने कहा कि पेड़ उसका है और केशव ने झूठ बोला। दूसरी ओर, केशव ने कहा कि वह पेड़ का असली मालिक है और राघव झूठा है।
पेड़ एक और मालिक दो समस्या बहुत कठिन थी और उनमें से कोई भी हार स्वीकार नहीं करना चाहता था। दोनों पक्षों को सुनने और चर्चा करने के बाद, बादशाह अकबर ने मामले को अपने नवरत्नों में से एक बीरबल के पास भेजा। मामले को सुलझाने और सच्चाई का पता लगाने के लिए बीरबल ने एक नाटक रचा।
उस शाम, बीरबल ने दो सैनिकों को राघव के घर जाने और उसे बताने के लिए कहा कि उसके आम के पेड़ से आम चोरी हो गए हैं। और दो सिपाहियों को केशव के घर जाकर यही सन्देश देने को कहा। बीरबल ने यह भी कहा कि इस संदेश के बाद तुम उनके घर के पीछे छिप जाना और देखना कि राघव और केशव क्या कर रहे हैं। बीरबल ने यह भी कहा कि राघव और केशव को यह पता नहीं चलना चाहिए कि आप आम चोरी की सूचना लेकर उनके घर जा रहे हैं। सिपाहियों ने वैसा ही किया जैसा बीरबल ने कहा था।
दो सिपाही केशव के घर गये और दो राघव के घर गये। जब वे वहां पहुंचे तो उन्हें पता चला कि राघव और केशव घर पर नहीं हैं, तो सैनिकों ने यह खबर उनकी पत्नियों को दी। जब केशव घर लौटा तो उसकी पत्नी ने उसे आम चोरी होने की जानकारी दी। यह सुनकर केशव ने कहा, “हे भाग्यवान, मुझे खाना तो खिलाओ, अब मैं आम के चक्कर में भूखा क्यों रहूँ?” कौन सा पेड़ मेरा है? चोरी हो तो होने दो. सुबह देखेंगे.’’ इतना कह कर वह आराम से बैठ गया और खाना खाने लगा.
इसी बीच राघव घर आया और जब उसकी पत्नी ने उसे इस बारे में बताया तो वह पेड़ की तरफ भागा भागा गया। जब उसकी पत्नी उसके पीछे चिल्लाई, “अरे, खाना तो खाओ,” राघव ने कहा, “मैं खाना तो सुबह खा सकता हूं, लेकिन अगर आज मेरे आम चोरी हो गए, तो मेरी साल भर की सारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी।” घर के बाहर छुपे सिपाहियों ने सब कुछ देखा, फिर दरबार में लौट आए और बीरबल को सारी कहानी बताई ।
अगले दिन दोनों फिर अदालत में पेश हुए। बीरबल ने उनके सामने ही बादशाह अकबर से कहा “जहाँपनाह , यह पेड़ ही सारी समस्याओं की जड़ है, क्यों न हम वो पेड़ ही कटवा दें। न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। बादशाह अकबर ने इस बारे में राघव और केशव से पूछा “इस बारे में आप दोनों का क्या ख्याल है?” इस पर केशव ने कहा, ” हुजूर , आप जो भी कहेंगे, मैं चुपचाप मान लूँगा।”वहीं राघव ने कहा “मालिक, मैंने सात वर्ष तक उस पेड़ को सींचा है। आप चाहें तो उसे केशव को दे दीजिए, लेकिन कृपा करके उसे कटवाएं न। मैं आपके आगे हाथ जोड़ता हूं।”
उन दोनों की बात सुन कर बादशाह अकबर ने बीरबल की तरह देखा और कहा, “अब आपका क्या कहना है, बीरबल?” इसके बाद बीरबल ने बादशाह को बीती रात का किस्सा सुनाया और मुस्कुराते हुए कहा, “हुजूर, पेड़ एक और मालिक दो, ऐसा कैसे हो सकता है? कल रात हुई घटना और आज हुई इस बात के बाद, यह साबित हो चुका है कि राघव ही पेड़ का असली मालिक है और केशव झूठ बोल रहा है।”
यह सुनकर बादशाह ने बीरबल को शाबाशी दी। उन्होंने अपने हक के खातिर लड़ने के लिए राघव को बधाई दी और चोरी करने व झूठ बोलने के लिए केशव को जेल में बंद करने का आदेश दिया।
कहानी से सीख :
एक पेड़ और दो मालिक कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि परिश्रम किए बिना छल से किसी और की चीज चुराने का अंजाम बुरा होता है।