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महाभारत की कहानी : परीक्षित के जन्म की कहानी

महाभारत की कहानी : परीक्षित के जन्म की कहानी

परीक्षित के जन्म की कहानी महाभारत युद्ध के समय की है। जब द्रौपदी को पता चला कि अश्वत्थामा ने उसके पांच पुत्रों को मार डाला है, तो उसने अनशन करने का फैसला किया। द्रौपदी ने प्रण लिए था की वह अपन अनशन तभी तोड़ेगी जब तक की अश्वत्थामा के सिर पर लगी मणि उसे नहीं मिल जाती।

जब यह बात अर्जुन को पता चली तो वह अश्वत्थामा से युद्ध करने चले गये। दोनों पक्षों के बीच घमासान युद्ध शुरू हो गया। अर्जुन को मौत के घाट उतारने के लिए अश्वत्थामा ने अपना ब्रह्मास्त्र निकाला। यह देखकर अर्जुन ने भी अपनी रक्षा के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। तभी नारद और ऋषि व्यास वहां पहुंचे और उन्होने ब्रह्मास्त्र का उपयोग करने से मना किया। इसके बाद अर्जुन ने ब्रह्मास्त्र तो लौटा दिया, लेकिन अश्वत्थामा ने नहीं लौटाया।

दरअसल, अश्वत्थामा पांचों पांडवों को नष्ट करना चाहता था। इसलिए उन्होंने अपने ब्रम्हास्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी पर ब्रह्मास्त्र चलाया। इस संबंध में, भगवान कृष्ण ने कहा, “चूंकि अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा को परीक्षित नामक पुत्र के जन्म का आशीर्वाद मिला है, इसलिए वह निश्चित रूप से जन्म लेगा।” यदि वह मरा हुआ भी हो, तो भी मैं उसे जीवित कर दूंगा। और वह एक महान सम्राट बनेगा और तुम इस पाप को तीन हजार वर्षों तक सहन करोगे। इसके अलावा तुम्हारे खून से हमेशा दुर्गंध आती रहेगी और वह ऐसे ही बहता रहेगा। साथ ही आप तमाम तरह की बीमारियों से भी घिरे रहेंगे। ,

इसके बाद अर्जुन अश्वत्थामा को रस्सी से बांधकर द्रौपदी के पास ले गए। अश्वत्थामा की हालत देखकर द्रौपदी को दया आ गई और उसने अर्जुन से उसे छोड़ देने की अपील की। लेकिन भगवान कृष्ण ने इसकी अनुमति नहीं दी और अर्जुन को उसके सिर से मणि निकालकर द्रौपदी को देने का आदेश दिया।

ब्रह्मास्त्र के गर्भ में प्रवेश करते ही उत्तरा को अत्यंत पीड़ा हुई। यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने अपना छोटा रूप धारण किया और उत्तरा के गर्भ में प्रवेश कर गये। कृष्ण का छोटा रूप केवल अंगूठे के आकार का था। वह शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किये हुए थे। उन्होंने ब्रह्मास्त्र की अग्नि को शांत किया, जिसे अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में छोड़ा था। वहीं, गर्भ में पल रहा बच्चा यह देखकर हैरान रह गया कि मेरी माँ के गर्भ में कौन आया। कुछ समय बाद उत्तरा ने एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन बच्चा मृत पैदा हुआ। जब उसने यह देखा तो वह रोने लगी.

उन्होंने भगवान कृष्ण से कहा, “हे नारायण! तुमने कहा था कि मेरे पुत्र पर ब्रह्मास्त्र का असर नहीं होगा और वह जीवित पैदा होगा। वह कई वर्षों तक अमर रहेगा, लेकिन यह मरा हुआ पड़ा है। प्रभु, कृपया उसे फिर से जीवित कर दें। उत्तरा की बातें सुनकर भगवान श्रीकृष्ण तुरंत प्रसूतिगृह में प्रवेश कर गये और बोले, हे पुत्री, दुखी मत हो। उसका पुत्र अवश्य जीवित रहेगा। मैंने स्वयं उसके जीवन की रक्षा की।”

इसके बाद कृष्ण भगवान ने मृत बालक पर अमृतमयी नजरें डाली और कहा, “अगर मैंने जीवन में कभी झूठ का साथ नहीं दिया है और हमेशा ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन किया है। कभी किसी लड़ाई में अपनी पीठ नहीं दिखाई है न ही कभी अधर्म का साथ दिया है को अभी इसी समय अभिमन्यु का यह पुत्र जो मरा पड़ा है वह जीवित हो जाए। ” इतना कहने के बाद कृष्ण ने जब उस मृत बालक पर अपना हाथ डाला तो वह जीवित हो गया और रोने लगा। इसके बाद भगवान कृष्ण ने ब्रह्मास्त्र को वापस ब्रह्मलोक भेज दिया।

यह चमत्कार देख सभी स्त्रियां आश्चर्यचकित हो गई। इसके बाद भगवान कृष्ण ने अभिमन्यु के पुत्र का नाम परीक्षित रखा। इसके पीछे का कारण था कि वह बालक कुरुकुल के नाश होने पर जन्मा था। वहीं, जब युधिष्ठिर वापस आए और उन्हें बालक के जन्म के बारे में पता चला तो वे भी खुशी से झूम उठे। इस खुशी में उन्होंने हाथी, छोड़े, अन्न, गाय आदि दान दिए। इसके बाद उन्होंने ज्योतिष को बुलाया और बच्चे के भविष्य की जानकारी ली। इसपर ज्योतिषी ने कहा, “यह बालक प्रभु श्रीकृष्ण चन्द्र का भक्त कहलाएगा। यह एक धर्मी, यशस्वी, पराक्रमी व दानी होगा। ”

ज्योतिष ने आगे बताया कि, “ जीवन में एक ऋषि का शाप पाकर गंगा के तट पर यह श्री शुकदेव से आत्मज्ञान की प्राप्ति करेगा। ” ज्योतिष की बात सुनकर युधिष्ठिर खुश हुए और उन्हें दक्षिणा देकर वहां से विदा कर दिया।

कहानी से सीख – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कभी भी किसी कार्य को छल कपट के साथ नहीं करना चाहिए। इससे हमारा बुरा ही होता है।