परी कथा : हंसेल और ग्रेटल दो बच्चों की कहानी
सालों पहले पंडारी शहर के पंचमढ़ी जंगल के पास एक लकड़हारा अपने परिवार के साथ रहता था। उसके दो बच्चे थे हंसल और ग्रेटल। लकड़हारा अपने दोनों बच्चों से बेहद प्यार करता था, लेकिन उनकी सौतेली मां को दोनों बिल्कुल पसंद नहीं थे। लकड़हारा गरीब होने की वजह से बहुत मुश्किल से अपना परिवार चला रहा था। एक दिन उसने अपनी पत्नी से कहा, “इतने कम पैसों में घर-परिवार चलाना बहुत मुश्किल लग रहा है।”
पति की यह बात सुनते ही उसने कहा कि तुम चिंता मत करो। मैं कोई रास्ता निकाल लूंगी, जिससे हम आराम से जिंदगी जी लेंगे। यह कहते हुए लकड़हारे की पत्नी के मन में हुआ कि क्यों न वो दोनों बच्चों को जंगल छोड़ दे, जिससे उनका खर्च कम हो जाएगा।
इसी बीच जब एक दिन लकड़हारा बाजार गया, तो उनकी सौतेली मां हंसल और ग्रेटल को लेकर जंगल चली गई। उसने जंगल के बीच में दोनों को छोड़ दिया और कहा कि तुम लकड़ी इकट्ठा करो और मैं अभी आती हूं। इतना कहकर वह तेजी से अपने घर चली गई।
कुछ समय बाद शाम हुई और दोनों परेशान होने लगे। ग्रेटल डर के मारे रोने लगी, लेकिन हंसल ने उसे चुप कराया और कुछ देर इंतजार करने को कहा। जैसे ही चांद निकला, तो हंसल और ग्रेटल दोनों जंगल से घर की ओर निकलने लगे। तभी ग्रेटल ने कहा कि भाई हमें घर का रास्ता याद ही नहीं है, हम कैसे घर तक पहुंचेंगे। तभी हंसल ने बताया कि सुबह घर से आते समय वो रास्ते में चमकीले पत्थर फेंकता हुआ आया था। अब वो उन्हें घर तक पहुंचाएंगे। कुछ ही देर में चांद की रोशनी में वो पत्थर चमकने लगे और दोनों उनकी मदद से घर पहुंच गए।
दोनों को घर के दरवाजे में देखकर उनकी मां को बहुत गुस्सा आया। अगले दिन फिर वो उन दोनों को जंगल लेकर जाती है। इस बार उनकी मां उन्हें बहुत घने जंगल में छोड़ देती है। वह बच्चों को दोबारा लकड़ी इकट्ठा करने को कहती है और खुद सीधे अपने घर चली जाती है।
एक बार फिर घने जंगल में हंसल और ग्रेटल परेशान हो जाते हैं। भूख शांत करने के लिए वो जंगल से कुछ फल तोड़कर खा लेते हैं। उसके बाद चांद निकलते ही घर ढूंढने के लिए दोनों निकल पड़ते हैं। दो दिन तक वो घर ढूंढते-ढूंढते थक जाते हैं, लेकिन घर नहीं मिलता। साथ ही वो और घने जंगल में चले जाते हैं।
तभी उन्हें एक चिड़िया की आवाज सुनाई देती है। वो उस आवाज को सुनते-सुनते आगे बढ़ते हैं। चलते-चलते उन्हें चॉकलेट से बना एक घर दिखाई देता है। वो दोनों उस घर में जाकर भर पेट चॉकलेट और केक खाते हैं। शाम होते ही उस घर का दरवाजा खुलता है और वहां एक बूढ़ी महिला आती है। बूढ़ी महिला बच्चों को बड़े प्यार से एक कमरे में सुला देती है।
जैसे ही बच्चे सो जाते हैं, तो वह महिला हंसल को बंदी बना लेती है। वो हंसल को एक पिंजरे में बंद करके रखती है और ग्रेटल को घर का काम करने के लिए खुला छोड़ देती है। कुछ दिनों तक ग्रेटल घर का काम करती रही और हंसल पिंजरे में भूखा बंद रहा। तभी महिला ने एक दिन हंसल को पिंजरे में भरपेट खाना खाने को दिया और उसे बताया कि वो कल उसको खा जाएगी। दरअसल, वह एक भूत थी, जिसने बच्चों को फंसाने के लिए चॉकलेट का घर बनाया था।
अगले दिन वह महिला बड़े से बर्तन में पानी उबाल रही थी, जिसे देखते ही ग्रेटल के मन में हुआ कि क्यों न इसे इसमें ही धक्का दे दिया जाए। यह सोचते ही उसने महिला को उबलते पानी में धक्का दे दिया और अपने भाई को उसकी कैद से आजाद करवा लिया। उधर, पानी में गिरने की वजह से उस महिला की मौत हो गई।
दोनों भाई-बहन आजाद होने के बाद उस महिला के कमरे में गए। वहां खूब सारे सोने के सिक्के और मोती रखे हुए थे। हंसल और ग्रेटल अपने जेब में कुछ सिक्के और मोती रख लेते हैं और फिर अपना घर ढूंढने के लिए निकल जाते हैं। चलते-चलते उन्हें एक जाना-पहचाना रास्ता दिखता है और वो उस पर दो घंटे तक आगे बढ़ते हैं। तभी चांद निकल आता है और हंसल द्वारा पहली बार जंगल आते हुए फेंके गए चमकीले पत्थर चमकने लगते हैं। दोनों उन पत्थरों की मदद से घर पहुंच जाते हैं।
दोनों बच्चों को घर में देखते ही उनके पिता बहुत खुश होते हैं। हंसल और ग्रेटल को वो गले से लगा लेते हैं। इसी दौरान वो उनकी जेब में सोने के सिक्के और बेशकीमती मोती देख लेते हैं। तभी बच्चे पूरी कहानी सुनाते हैं और पिता को दोबारा गले लगा लेते हैं। उधर, उनकी सौतेली मां अपने व्यवहार के लिए बच्चों से माफी मांगती है और सब खुशी-खुशी साथ रहने लगते हैं।
कहानी से सीख:
मुसीबत में घबराने की जगह हिम्मत से काम लेना चाहिए। कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है और हिम्मत रखने वाले हर मुश्किल से निकलने का रास्ता ढूंढ लेते हैं।