मुंशी प्रेमचंद की कहानी : कौशल
पंडित बलराम से उनकी पत्नी माया काफी समय से एक उस हार की मांग कर रही थी। हर बार पंडित उनकी बात को टाल दिया करता। वह अपनी पत्नी को कभी नहीं बता सका कि उसके पास हार खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। वह हमेशा कहता था, “अगर तुम अपना हार घर पर रखोगी, तो वह चोरी हो जाएगा।” इसके अलावा, जौहरी हमेशा हार की कीमत बढ़ा देता है। इस आभूषण को खरीदने से कोई लाभ नहीं होता है। यदि केवल अस्थायी सजावट के लिए बनाया गया हार इतनी परेशानी का कारण बनता है, तो इसे खरीदने का कोई मतलब नहीं है।
पंडित की पत्नी काफी भोली थी। वो हमेशा अपने पति के इन बातों में आ जाती थी, लेकिन दूसरी महिलाओं के पास गहने देखकर उसके मन में होता था कि काश! मेरे पास भी ऐसा जेवर होता। वैसे पंडित थोड़ी मेहनत करते, तो अपनी पत्नी के लिए हार खरीद सकते थे, लेकिन उन्हें सिर्फ भोजन करना और आराम करना ही पसंद था। वो अपने आलस्य के कारण पत्नी की चार बातों को सुनना भी बुरा नहीं मानते थे।
एक दिन, जब पंडित अपने बच्चों को पढ़ाकर घर लौट रहा था, तो उसने देखा कि उसकी पत्नी अपने गले में वही हार पहने हुए है जिसका उसने लंबे समय से सपना देखा था। जब उसने हार देखा तो पूछा, “अरे, तुम्हारे गले में इतना सुंदर हार कैसे आया ?”
महिला ने उत्तर दिया कि यह पड़ोस में रहने वाली एक महिला का है। मैं आज उनसे मिलने गयी थी। जब उसने मुझे यह हार दिखाया, तो मैंने इसे पहन लिया ताकि आप इसे देख सकें। मुझे बस ऐसा ही एक हार चाहिए.
पंडित ने कहा, “पागल! तुम इतना महँगा हार लेकर आयी जो किसी दूसरे का है। यदि यह चोरी हो जाता है, तो इसकी भरपाई करानी होगी, और इसके अलावा, यह शर्म की बात है।
पंडित की पत्नी कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. उन्होंने कहा कि यह हार 20 तोले का है और मुझे भी यही गहना चाहिए.
पत्नी की जिद सुनकर पंडित घबरा गया। तब महिला ने कहा, “अगर सभी महिलाएं ऐसे हार पहनती हैं, तो मैं उन्हें क्यों नहीं पहन सकती?”
क्रोधित पंडित ने कहा, “अगर हर कोई कुएं में कूदेगा, तो क्या आप भी कूद जाएंगे?” तब पंडित ने अपने विचार एकत्र किये और अपनी पत्नी से कहा कि भविष्य में इस हार की कीमत कम हो जायेगी। अगर मैं इसे आज 1000 रुपये में खरीदूं तो एक साल में इसकी कीमत 600 रुपये होगी और पांच साल में कीमत केवल 300 रुपये होगी। ये बहुत बड़ा नुकसान है. मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर सकता और हार नहीं खरीद सकता। आप यह हार जल्दी वापस कर दो. इन शब्दों के साथ पंडित घर से चला गया।
उस रात, माया ने अपने घर में एक परछाई देखी। वह चिल्लाने लगी, पंडित पूछता है कि क्या हुआ और वह कहती है कि उसने एक छाया देखी और घर के अंदर चला गया। वह पक्का चोर है. पंडित ने तुरंत अपनी पत्नी से एक छड़ी और एक लालटेन मांगी।
पत्नी ने कहा कि मुझे उठने में बहुत डर लग रहा था तभी कुछ लोग बाहर आ गये.
पंडित से पूछा. क्या घर में कोई चोरी हुई है? “
पंडित की पत्नी माया ने कहा, “नहीं, वह छत से कूद गया और तेजी से हमारे बिस्तर के पास से भाग गया।” तभी माया ने अपना हाथ अपनी गर्दन पर ले गयी और मुझे एहसास हुआ कि मेरा हार मेरी गर्दन से गायब है, हे भगवान! वह अपना सिर पीटने लगा.
पंडित बलराम शास्त्री ने पूछा: तुम अपना हार उतारकर क्यों नहीं सोए?
माया ने भयभीत स्वर में कहा कि वह नहीं जानती थी कि आज ही इस घर में कोई बड़ी समस्या आ जाएगी।
तब पंडित ने कहा: तो तुम्हें समझ आया या नहीं? “
इस बीच पंडित के पड़ोसियों ने घर की तलाशी ली लेकिन चोर का पता नहीं चल सका। छत पर भी देखा लेकिन कुछ नहीं मिला.
एक पड़ोसी ने कहा, “ऐसा लगता है कि किसी जानने वाले ने यह किया है।”
एक अन्य पड़ोसी ने कहा: “जब तक उनका परिवार उन्हें नहीं बताता, तब तक कोई कुछ नहीं जानता।” हमें यह पता लगाना होगा कि हार के अलावा और क्या चोरी हुआ है।
पंडित की पत्नी माया ने कहा, “बक्से बंद हैं और बर्तन पूरे घर में ही हैं।” उस चोर को पराये लोगों का सामान ही ले जाना था। मेरा कुछ ले जाता। वो गहना ले गया, जिसकी मैं मालकिन ही नहीं थी।
“अब हार का मजा आ गया न तुम्हें। कितना समझाया, लेकिन तुम्हें कुछ समझ आए तब न बात बने”, तंज मारते हुए पंडित ने कहा।
माया बोली, “पूरे 20 तोले का था। अब कह दूंगी उसे की चोर ले गया, जो लेगी हार के बदले ले ले।”
पंडित ने झल्लाते हुए कहा कि तुम्हें बदले में हार ही न देना पड़ेगा।
पत्नी ने पूछा कि इतना पैसा तो है नहीं। इसका इंतजाम कैसे होगा?
पंडित बोले, “कुछ-न-कुछ तो करना ही पड़ेगा। नहीं तो बदनामी होगी। तुमने उसका गहना रखकर बहुत बड़ी भूल कर दी है।
माया ने दुखी होते हुए कहा कि मेरा भाग्य ही खराब है। दूसरों की चीज गले में डालकर मुझे क्या सुख मिला था कि मैं उसे पहनकर ही सो गई।
उसके पति ने कहा कि अब खुद को दोष मत दो। देखते हैं कुछ-न-कुछ कर ही लेंगे। पड़ोसी से कह देना कि जल्द ही उनका हार उन्हें मिल जाएगा।
इतना कहने के बाद पंडित सोचने लगा कि आखिर ऐसा क्या करें कि उस हार की कीमत का पैसा जुट जाए। उसके बाद पंडित ने अपने ज्ञान से धन कमाना शुरू कर दिया। पंडित को उस हार की रकम चुकाने की इतनी चिंता थी कि उन्होंने दिन में सोना तक छोड़ दिया था। बच्चों को पाठशाला में पढ़ाने के बाद श्रीमद् भागवत की कथा करते और फिर लोगों की कुंडलियां सब देखते। इतना करते-करते देर रात तक जागते और फिर सुबह पाठशाला में बच्चों को पढ़ाने के लिए चले जाते।
इस तरह दिन-रात एक करके उन्होंने छह महीने तक किसी तरह से उस हार की रकम जीतना पैसा कम लिया। जैसे ही हार की रकम पूरी हुई पंडित सीधे ठीक वैसा ही जेवर खरीदकर ले आए और अपनी पत्नी के सामने रख दिया।
पंडित की पत्नी माया पहले तो हार देखकर बहुत खुश हुई। फिर उसने पंडित से पूछा कि आप गुस्से में दे रहे हैं क्या ये हार?
जवाब में पंडित ने पूछा, “गुस्से और नाराजगी जैसी क्या बात है? उसका हार हमारे घर से गायब हुआ था, तो उधार तो चुकाना ही होगा न?”
इतना सुनकर पंडित शास्त्री की पत्नी बोली, “नहीं, ये उधार नहीं है।”
पंडित ने कहा, “चलो, उधार न सही, बदला तो है न? जाओ उसे ये दे आओ।
उसकी पत्नी बोली, “नहीं-नहीं, ये बदला भी नहीं है।
गुस्से में पंडित ने पूछा, “अब तुम ही बता दो कि क्या है ये?”
पत्नी माया ने कहा कि यह आपकी तरफ से मुझे दिया गया तोहफा और निशानी है। उस रात हार चोरी नहीं हुआ था। मैंने तो बस ऐसे ही शोर मचा दिया था।
हैरान होते हुए पंडित ने सवाल किया, “सही में?”
माया ने कहा, “हां, सच में।
पंडित ने फिर सवाल पूछा, “तो तू मेरा कौशल देखना चाहती थी।”
जैसे ही पत्नी ने जवाब हां में दिया पंडित बोले, “तुम्हें कोई अंदाजा नहीं है कि इस कौशल के लिए मुझे क्या सब मूल्य चुकाना पड़ा है।”
पत्नी ने मासूमियत से पूछा, “600 से भी ज्यादा क्या?”
पंडित ने भारी मन से कहा, “हां, बहुत ऊपर। इस कौशल के लिए मुझे अपनी स्वतंत्रता तक को कुर्बान करना पड़ा।”
कहानी से सीख:
आलस्य में इंसान कई बार अपनों की इच्छा पूरी नहीं करता है, लेकिन जब उसपर जिम्मेदारी का भार पड़ता है, तो वो उसे किसी भी तरीके से पूरा कर लेता है।